राष्ट्रीय समाचार

उच्चतम न्यायालय ने वन रैंक वन पेंशन पर सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रखा।

देहरादून 23 फरवरी 2022,

दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) संबन्धित पूर्व सेना के जवानों एवं अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया है।

इस मामले में केंद्रीय सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए, उच्चतम न्यायालय ने गत सप्ताह कहा था कि ‘समान रैंक समान पेंशन की नीति को केंद्र द्वारा बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया गया है। सशस्त्र बलों के पेंशनभोगियों को वास्तव में दिये गये लाभ की तुलना में कहीं अधिक ‘गुलाबी तस्वीर’ पेश की गयी है।

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने केंद्र सरकार से प्रश्न पूछा कि, सशस्त्र बलों में कितने कर्मियों को ‘फोडीफाइड एश्योर्ड करियर प्रोगेशन’ (एमएसीपी) मिला है, कितने कर्मी ‘एश्योर्ड करियर प्रोगरेशन’ (एसीपी) में हैं और यदि न्यायालय ओआरओपी में एमएसीपी को भी शामिल करने को कहे, तो वित्तीय आवंटन कितना होगा।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने केंद्र सरकार के वकील अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल एन वेंकटरमण से पूछा था कि, क्या 17 फरवरी 2014 को संसद में किये गये वादे से पहले ऐसी कोई नीति थी कि सरकार ओआरओपी प्रदान करने के लिए सैद्धांतिक रूप से राजी है। वेंकटरमण से न्यायालय ने यह भी पूछा कि कामकाज के नियम के तहत सक्षम प्राधिकार कौन है, किसने ओआरओपी से जुड़ा फैसला लिया था‌। जवाब मे वेंकटरमण ने बताया कि यह फैसला केंद्रीय कैबिनेट ने लिया था जिसकी अधिसूचना जारी की गयी थी।

कोर्ट ने कहा, ‘हमें इस तथ्य पर गौर करना होगा कि ओआरओपी की कोई सांविधिक परिभाषा नहीं है यह एक नीतिगत फैसला है। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि संसद में प्रस्तुत किए गए तथ्यों और जारी की गई नीति के बीच विसंगति है। क्या यह अनुच्छेद 14 का हनन करता है।

जस्टिस सूर्यकांत ने वेंकटरमण से कहा था कि ओआरओपी सेवा काल के बाद लाभ प्रदान करता है, जबकि एमएसीपी सेवा काल के दौरान लाभ प्रदान करता है। उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि ओआरओपी के लिए एमएसीपी एक बाधा है।

 

 

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