राष्ट्रीय समाचार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि 30 जनवरी को ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से देशवासियों को संबोधन।

देहरादून 30 जनवरी 2022,

दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि 30 जनवरी को ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि,

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार ! आज ‘मन की बात’ के एक और एपिसोड के जरिए हम एक साथ जुड़ रहे हैं। ये 2022 की पहली ‘मन की बात’ है। आज हम फिर ऐसी चर्चाओं को आगे बढ़ाएंगे, जो हमारे देश और देशवासियों की सकारात्मक प्रेरणाओं और सामूहिक प्रयासों से जुड़ी होती है। आज हमारे पूज्य बापू महात्मा गाँधी जी की पुण्यतिथि भी है। 30 जनवरी का ये दिन हमें बापू की शिक्षाओं की याद दिलाता है। अभी कुछ दिन पहले ही हमने गणतन्त्र दिवस भी मनाया। दिल्ली में राजपथ पर हमने देश के शौर्य और सामर्थ्य की जो झाँकी देखी, उसने सबको गर्व और उत्साह से भर दिया है। एक परिवर्तन जो आपने देखा होगा अब गणतंत्र दिवस समारोह 23 जनवरी, यानि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जन्म जयंती से शुरू होगा और 30 जनवरी तक यानि गाँधी जी की पुण्यतिथि तक चलेगा। इंडिया गेट पर नेताजी की डिजीटल प्रतिमा भी स्थापित की गई है। इस बात का जिस प्रकार से देश ने स्वागत किया, देश के हर कोने से आनंद की जो लहर उठी, हर देशवासी ने जिस प्रकार की भावनाएँ प्रकट की उसे हम कभी भूल नहीं सकते हैं।

साथियो, आज़ादी के अमृत महोत्सव में देश इन प्रयासों के जरिए अपने राष्ट्रीय प्रतीकों को पुनः प्रतिष्ठित कर रहा है। हमने देखा कि इंडिया गेट के समीप ‘अमर जवान ज्योति’ और पास में ही ‘ राष्ट्रीय युद्ध ’ पर प्रज्जवलित ज्योति को एक किया गया। इस भावुक अवसर पर कितने ही देशवासियों और शहीद परिवारों की आँखों में आँसू थे। ‘राष्ट्रीय युद्ध स्मारक’ में आज़ादी के बाद से शहीद हुए देश के सभी जाबांजों के नाम अंकित किए गए हैं। मुझे सेना के कुछ पूर्व जवानों ने पत्र लिखकर कहा है कि – “शहीदों की स्मृति के सामने प्रज्जवलित हो रही ‘अमर जवान ज्योति’ शहीदों की अमरता का प्रतीक है”। सच में, ‘अमर जवान ज्योति’ की ही तरह हमारे शहीद, उनकी प्रेरणा और उनके योगदान भी अमर हैं। मैं आप सभी से कहूँगा, जब भी अवसर मिले ‘ राष्ट्रीय युद्ध स्मारक ’ जरुर जाएँ। अपने परिवार और बच्चों को भी जरुर ले जाएँ। यहाँ आपको एक अलग ऊर्जा और प्रेरणा का अनुभव होगा।

साथियो, अमृत महोत्सव के इन आयोजनों के बीच देश में कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिए गए। एक है, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार। ये पुरस्कार उन बच्चों को मिले, जिन्होंने छोटी-सी उम्र में साहसिक और प्रेरणादायी काम किए हैं। हम सबको अपने घरों में इन बच्चों के बारे में जरुर बताना चाहिए। इनसे हमारे बच्चों को भी प्रेरणा मिलेगी और उनके भीतर देश का नाम रोशन करने का उत्साह जगेगा। देश में अभी पद्म सम्मान की भी घोषणा हुई है। पद्म पुरस्कार पाने वाले में कई ऐसे नाम भी हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। ये हमारे देश के ‘अज्ञात सैनानी’ हैं, जिन्होंने साधारण परिस्थितियों में असाधारण काम किए हैं। जैसे कि, उत्तराखंड की बसंती देवी जी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। बसंती देवी ने अपना पूरा जीवन संघर्षों के बीच जीया। कम उम्र में ही उनके पति का निधन हो गया था और वो एक आश्रम में रहने लगी। यहाँ रहकर उन्होंने नदी को बचाने के लिए संघर्ष किया और पर्यावरण के लिए असाधारण योगदान दिया। उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भी काफी काम किया है। इसी तरह मणिपुर की 77 साल की लौरेम्बम बीनो देवी दशकों से मणिपुर की ‘ लीसा टैक्सटाइल आर्ट ‘ का संरक्षण कर रही हैं। उन्हें भी पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। मध्य प्रदेश के अर्जुन सिंह को बैगा आदिवासी नृत्य की कला को पहचान दिलाने लिए पद्म सम्मान मिला है। पद्म सम्मान पाने वाले एक और व्यक्ति हैं, श्रीमान् अमाई महालिंगा नाइक। ये एक किसान है और कर्नाटका के रहने वाले हैं। उन्हें कुछ लोग ‘ टनल मैन ‘ भी कहते हैं। इन्होंने खेती में ऐसे-ऐसे ‘ इनोवेशन ‘ किए हैं, जिन्हें देखकर कोई भी हैरान रह जाए। इनके प्रयासों का बहुत बड़ा लाभ छोटे किसानों को हो रहा है। ऐसे और भी कई ‘ अज्ञात सैनानी ‘ हैं जिन्हें देश ने उनके योगदान के लिए सम्मानित किया है। आप जरुर इनके बारे में जानने की कोशिश करिए। इनसे हमें जीवन में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

मेरे प्यारे देशवासियो, अमृत महोत्सव पर आप सब साथी मुझे ढ़ेरों पत्र और संदेश भेजते हैं, कई सुझाव भी देते हैं। इसी श्रृंखला में कुछ ऐसा हुआ है जो मेरे लिए अविस्मरणीय है। मुझे एक करोड़ से ज्यादा बच्चों ने अपने ‘मन की बात’ पोस्ट कार्ड के जरिए लिखकर भेजी है। ये एक करोड़ पोस्ट कार्ड, देश के अलग-अलग हिस्सों से आये हैं, विदेश से भी आये हैं। समय निकालकर इनमें से काफी पोस्ट कार्ड को मैंने पढ़ने का प्रयास किया है। इन पोस्टकार्ड्स में इस बात के दर्शन होते हैं कि देश के भविष्य के लिए हमारी नई पीढ़ी की सोच कितनी व्यापक और कितनी बड़ी है। मैंने ‘मन की बात’ के श्रोताओं के लिए कुछ पोस्टकार्ड छांटे हैं जिन्हें मैं आपसे शेयर करना चाहता हूँ। जैसे यह एक असम के गुवाहाटी से रिद्धिमा स्वर्गियारी का पोस्ट कार्ड है। रिद्धिमा क्लास 7वीं की स्टूडेंट हैं और उन्होंने लिखा है कि वो आज़ादी के 100वें साल में एक ऐसा भारत देखना चाहती हैं जो दुनिया का सबसे स्वच्छ देश हो, आतंकवाद से पूरी तरह से मुक्त हो, शत-प्रतिशत साक्षर देशों में शामिल हो, जीरो एक्सीडेंटल कन्ट्री हो, और सन्सटेबल तकनीक से फूड सिक्योरिटी में सक्षम हो। रिद्धिमा, हमारी बेटियाँ जो सोचती हैं, जो सपने देश के लिए देखती हैं वो तो पूरे होते ही है। जब सबके प्रयास जुड़ेंगे, आपकी युवा-पीढ़ी इसे लक्ष्य बनाकर काम करेगी, तो आप भारत को जैसा बनाना चाहती है, वैसे जरुर होगा। एक पोस्ट कार्ड मुझे उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की नव्या वर्मा का भी मिला है। नव्या ने लिखा है कि उनका सपना 2047 में ऐसे भारत का है जहाँ सभी को सम्मानपूर्ण जीवन मिले, जहाँ किसान समृद्ध हो और भ्रष्टाचार न हो। नव्या, देश के लिए आपका सपना बहुत सराहनीय है। इस दिशा में देश तेजी से आगे भी बढ़ रहा है। आपने भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात की। भ्रष्टाचार तो दीमक की तरह देश को खोखला करता है। उससे मुक्ति के लिए 2047 का इंतजार क्यों ? ये काम हम सभी देशवासियों को, आज की युवा-पीढ़ी को मिलकर करना है, जल्द से जल्द करना है और इसके लिए बहुत जरुरी है कि हम कि हम अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता दें। जहाँ कर्तव्य निभाने का एहसास होता है। कर्तव्य सर्वोपरि होता है। वहाँ भ्रष्टाचार फटक भी नहीं सकता।

साथियो, एक और पोस्ट कार्ड मेरे सामने है चेन्नई से मोहम्मद इब्राहिम का। इब्राहिम 2047 में भारत को रक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी ताकत के रूप में देखना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि चंद्रमा पर भारत का अपना ‘रिसर्च बेस’ हो, और मंगल पर भारत, मानव आबादी को, बसाने का काम शुरू करे। साथ ही, इब्राहिम पृथ्वी को भी प्रदूषण से मुक्त करने में भारत की बड़ी भूमिका देखते हैं। इब्राहिम, जिस देश के पास आप जैसे नौजवान हो, उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है।

साथियो, मेरे सामने एक और पत्र है। मध्य प्रदेश के रायसेन में सरस्वती विद्या मंदिर में क्लास 10th की छात्रा भावना का। सबसे पहले तो मैं भावना को कहूँगा कि आपने जिस तरह अपने पोस्ट कार्ड को तिरंगे से सजाया है, वो मुझे बहुत अच्छा लगा। भावना ने क्रांतिकारी शिरीष कुमार के बारे में लिखा है।

साथियो, मुझे गोवा से लॉरेन्शियो परेरा का postcard भी मिला है। ये 12th की स्टूडेंट है। इनके पत्र का भी विषय है – आजादी के अज्ञात सैनानी , मैं इसका हिंदी भावार्थ आपको बता रहा हूं। इन्होंने लिखा है – “भीकाजी कामा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रही सबसे बहादुर महिलाओं में से एक थी। उन्होंने बेटियों को सशक्त करने के लिए देश-विदेश में बहुत से अभियान चलाए। अनेक प्रदर्शनियां लगाई। निश्चित तौर पर भीकाजी कामा स्वाधीनता आंदोलन की सबसे जांबांज महिलाओं में से एक थी। 1907 में उन्होंने जर्मनी में तिरंगा फहराया था। इस तिरंगे को डिजाइन करने में जिस व्यक्ति ने उनका साथ दिया था, वो थे – श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा। श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा जी का निधन 1930 में जीनेवा में हुआ था। उनकी अंतिम इच्छा थी कि भारत की आजादी के बाद उनकी अस्थियां भारत लायी जाए। वैसे तो 1947 में आजादी के दूसरे ही दिन उनकी अस्थियां भारत वापिस लानी चाहिए थीं, लेकिन, ये काम नहीं हुआ। शायद परमात्मा की इच्छा होगी ये काम मैं करूं और इस काम का सौभाग्य भी मुझे ही मिला। जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, तो वर्ष 2003 में उनकी अस्थियां भारत लाई गईं थीं। श्यामजी कृष्ण वर्मा जी की स्मृति में उनके जन्म स्थान, कच्छ के मांडवी में एक स्मारक का निर्माण भी हुआ है।

साथियो, भारत की आजादी के अमृत महोत्सव का उत्साह केवल हमारे देश में ही नहीं है। मुझे भारत के मित्र देश क्रोएशिया से भी 75 पोस्ट कार्ड मिले हैं। क्रोएशिया के ज़ाग्रेब में स्कूल ऑफ एप्लाइड आर्ट एंड डिजाइन के स्टूडेंट्स के उन्होंने ये 75 कार्ड भारत के लोगों के लिए भेजे हैं और अमृत महोत्सव की बधाई दी है। मैं आप सभी देशवासियों की तरफ से क्रोएशिया और वहाँ के लोगों को धन्यवाद देता हूँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, भारत शिक्षा और ज्ञान की तपो-भूमि रहा है। हमने शिक्षा को किताबी ज्ञान तक तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे जीवन के एक समग्र अनुभव के तौर पर देखा है। हमारे देश की महान विभूतियों का भी शिक्षा से गहरा नाता रहा है। पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने जहां बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की, वहीं महात्मा गांधी ने, गुजरात विद्यापीठ के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। गुजरात के आणंद में एक बहुत प्यारी जगह है – वल्लभ विद्यानगर। सरदार पटेल के आग्रह पर उनके दो सहयोगियों, भाई काका और भीखा भाई ने वहां युवाओं के लिए शिक्षा केंद्रों की स्थापना की। इसी तरह पश्चिम बंगाल में गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने शान्ति निकेतन की स्थापना की। महाराजा गायकवाड़ भी शिक्षा के प्रबल समर्थकों में से एक थे। उन्होंने कई शिक्षण संस्थानों का निर्माण करवाया और डॉ. अम्बेकर और श्री ऑरोबिन्दो समेत अनके विभूतियों को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित किया। ऐसे ही महानुभावों की सूची में एक नाम राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी का भी है। राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी ने एक टैक्नीकल की स्थापना के लिए अपना घर ही सौंप दिया था। उन्होंने अलीगढ़ और मथुरा में शिक्षा केंद्रों के निर्माण के लिए खूब आर्थिक मदद की । कुछ समय पहले मुझे अलीगढ़ में उनके नाम पर एक यूनिवर्सिटी मेंधं की आधारशिला रखने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। मुझे खुशी है कि शिक्षा के प्रकाश को जन-जन तक पहुंचाने की वही जीवंत भावना भारत में आज भी कायम है। क्या आपने जानते हैं कि इस भावना की सबसे सुन्दर बात क्या है ? वो ये है कि शिक्षा को लेकर ये जागरूकता समाज में हर स्तर पर दिख रही है। तमिलनाडु के त्रिप्पुर जिले के उदुमलपेट ब्लॉक में रहने वाली तायम्मल जी का उदाहरण तो बहुत ही प्रेरणादायी है। उन्होंने जो किया, उसकी कल्पना कोई नहीं कर सकता था। जिन तायम्मल जी ने नारियल पानी बेच-बेचकर कुछ पूंजी जमा की थी, उन्होंने एक लाख रुपये स्कूल के लिए दान कर दिए। वाकई, ऐसा करने के लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए, सेवा-भाव चाहिए। तायम्मल जी का कहना है अभी जो स्कूल है उसमें 8वीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है। अब जब स्कूल का इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधर जाएगा तो यहां हायर सेकंडरी तक की पढ़ाई होने लगेगी। हमारे देश में शिक्षा को लेकर यह वही भावना है, जिसकी मैं चर्चा कर रहा था। मुझे आईआईटी के एल्युमिनी के इसी तरह के दान के बारे में भी पता चला है।

प्रधानमंत्री ने भारत रत्न भूपेन हज़ारिका जी का गीत की सार्थकता को ‘मन की बात ‘ में शामिल करते हुए कहा कि,साथियो, इस गीत का जो अर्थ है वो बहुत सुसंगत है। इस गीत में कहा गया है, काजीरंगा का हरा-भरा परिवेश, हाथी और बाघ का निवास, एक सींग वाले गैंडे को पृथ्वी देखे, पक्षियों का मधुर कलरव सुने। असम की विश्वप्रसिद्ध हथकरघा पर बुनी गई मूंगा और एरी की पोशाकों में भी गैंडो की आकृति दिखाई देती है। असम की संस्कृति में जिस गैंडे की इतनी बड़ी महिमा है, उसे भी संकटों का सामना करना पड़ता था। वर्ष 2013 में 37 और 2014 में 32 गैंडों को तस्करों ने मार डाला था। इस चुनौती से निपटने के लिए पिछले सात वर्षों में असम सरकार के विशेष प्रयासों से गैंडों के शिकार के खिलाफ एक बहुत बड़ा अभियान चलाया गया। पिछले 22 सितम्बर को वर्ल्ड राईनों डे के मौके पर तस्करों से जब्त किये गए 2400 से ज्यादा सींगों को जला दिया गया था। यह तस्करों के लिए एक सख्त सन्देश था। ऐसे ही प्रयासों का नतीजा है कि अब असम में गैंडों के शिकार में लगातार कमी आ रही है। जहाँ 2013 में 37 गैंडे मारे गए थे, वहीँ 2020 में 2 और 2021 में सिर्फ 1 गैंडे के शिकार का मामला सामने आया है। मैं गैंडों को बचाने के लिए असम के लोगों के संकल्प की सरहाना करता हूँ।

साथियो, ऐसे ही सैकड़ों उदाहरण यह बताते हैं, हमारी संस्कृति, हमारे लिए ही नहीं, बल्कि, पूरी दुनिया के लिए एक अनमोल धरोहर है। दुनिया भर के लोग उसे जानना चाहते हैं, समझना चाहते हैं, जीना चाहते हैं। हमें भी पूरी जिम्मेदारी के साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत को खुद अपने जीवन का हिस्सा बनाते हुए सब लोगों तक पहुँचाने का प्रयास करना चाहिए।

साथियो, आज मैं आपके साथ लद्दाख की एक ऐसी जानकारी साझा करना चाहता हूँ जिसके बारे में जानकर आपको जरुर गर्व होगा। लद्दाख को जल्द ही एक शानदार ओपन सिन्थेटिक ट्रेक और ऐस्ट्रो टर्फ फुटबॉल स्टेडियम की सौगात मिलने वाली है। यह स्टेडियम10,000 फीट से अधिक की ऊँचाई पर बन रहा है और इसका निर्माण जल्द पूरा होने वाला है। लद्दाख का यह सबसे बड़ा ओपन स्टेडियम होगा जहाँ 30,000 दर्शक एक साथ बैठ सकेंगे। आपको यह जानकर भी अच्छा लगेगा कि फुटबॉल की सबसे बड़ी संस्था फीफा ने भी सर्टीफाई किया है। जब भी स्पोर्ट्स का ऐसा कोई बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार होता है तो यह देश के युवाओं के लिए बेहतरीन अवसर लेकर आता है। साथ-साथ जहाँ ये व्यवस्था होती है, वहाँ भी, देश-भर के लोगों का आना-जाना होता है, टूरिज्म को बढावा मिलता है और रोज़गार के अनेक अवसर पैदा होते हैं। स्टेडियम का भी लाभ लद्दाख के हमारे अनेकों युवाओं को होगा।

मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ में इस बार भी हमने अनेक विषयों पर बात की। एक विषय और है, जो इस समय सबके मन में है और वो है कोरोना का। कोरोना की नई वेव से भारत बहुत सफलता के साथ लड़ रहा है ये भी गर्व की बात है कि अब तक करीब-करीब साढ़े चार करोड़ बच्चों ने कोरोना वैक्सीन की डोज ले ली है। इसका मतलब ये हुआ, कि 15 से 18 साल की आयु-वर्ग के लगभग 60% यूथ तीन से चार हफ्ते में ही टीके लगवा लिए हैं। इससे न केवल हमारे युवाओं की रक्षा होगी बल्कि उन्हें पढाई जारी रखने में भी मदद मिलेगी। एक और अच्छी बात ये भी है कि 20 दिन के भीतर ही एक करोड़ लोगों ने प्रीकोशन डोज भी ले ली है। अपने देश की वैक्सीन पर देशवासियोँ का ये भरोसा हमारी बहुत बड़ी ताकत है। अब तो कोरोना संक्रमण भी कम होने शुरू हुए हैं – ये बहुत सकारात्मक संकेत है। लोग सुरक्षित रहें, देश की आर्थिक गतिविधियों की रफ़्तार बनी रहे – हर देशवासी की यही कामना है। और आप तो जानते ही हैं, ‘मन की बात’ में, कुछ बातें, मैं, कहे बिना रह ही नहीं सकता हूँ, जैसे, ‘स्वच्छता अभियान’ को हमें भूलना नहीं है, सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ अभियान को हमें और तेज़ी लानी जरुरी है, लोकल बार लोकल का मंत्र ये हमारी जिम्मेवारी है, हमें आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए जी-जान से जुटे रहना है। हम सबके प्रयास से ही, देश, विकास की नई ऊँचाइयों पर पहुँचेगा। इसी कामना के साथ, मैं, आपसे विदा लेता हूँ। बहुत बहुत धन्यवाद|

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