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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा न्यायाधीशों का दायित्व है कि वे अदालत कक्षों में अपनी बात कहने में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें ,अविवेकी टिप्पणी, संदिग्ध व्याख्याओं को जगह देती है।

देहरादून 28 नवंबर 2021,

उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय संविधान दिवस कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि भारतीय परंपरा में, न्यायाधीशों की कल्पना ‘स्थितप्रज्ञ’ (स्थिर ज्ञान का व्यक्ति) के समान शुद्ध और तटस्थ आदर्श के रूप में की जाती है। न्यायाधीशों का दायित्व है कि वे अदालत कक्षों में अपनी बात कहने में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें क्योंकि अविवेकी टिप्पणी, भले ही अच्छे इरादे से की गई हो, वह न्यायपालिका के महत्व को कम करने वाली संदिग्ध व्याख्याओं को जगह देती है।

राष्ट्रपति ने कहा, “हमारे पास ऐसे न्यायाधीशों की विरासत का एक समृद्ध इतिहास है, जो दूरदर्शिता से पूर्ण और निंदा से परे आचरण के लिए जाने जाते हैं, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए विशिष्ट पहचान बन गए हैं.” उन्होंने कहा कि उन्हें यह उल्लेख करने में खुशी हो रही है कि भारतीय न्यायपालिका इन उच्चतम मानकों का पालन कर रही है. कोविंद ने कहा, ”इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपने अपने लिए एक उच्च स्तर निर्धारित किया है. इसलिए, न्यायाधीशों का यह भी दायित्व है कि वे अदालत कक्षों में अपने बयानों में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें. अविवेकी टिप्पणी, भले ही अच्छे इरादे से की गई हो, न्यायपालिका के महत्व को कम करने वाली संदिग्ध व्याख्याओं को जगह देती है.”

राष्ट्रपति ने कहा, “शुरुआत से ही न्यायपालिका ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए आचरण के उच्चतम मानकों का लगातार पालन किया किया है. लोगों की नजर में यह सबसे भरोसेमंद संस्थान है.” राष्ट्रपति कोविंद ने सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों के खिलाफ की जाने वाली टिप्पणियों पर भी नाराजगी जताई.

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण ने अपने संबोधन में कहा कि विधायिका कानूनों के प्रभाव का आकलन या अध्ययन नहीं करती है, जो कभी-कभी ”बड़े मुद्दों” की ओर ले जाते हैं और परिणामस्वरूप न्यायपालिका पर मामलों का अधिक बोझ पड़ता है. वहीं,

न्यायमूर्ति रमण ने केंद्रीय कानून मंत्री की इस घोषणा की सराहना की कि सरकार ने न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 9,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है. वहीं, केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि कभी-कभी, अपने अधिकारों की तलाश में, लोग दूसरों के अधिकारों और अपने कर्तव्यों के बारे में भूल जाते हैं।

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि ऐसी स्थिति में नहीं रहा जा सकता, जहां विधायिका द्वारा पारित कानूनों और न्यायपालिका द्वारा दिए गए फैसलों को लागू करना मुश्किल हो। रिजिजू ने कहा कि मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों के बीच संतुलन तलाशने की जरूरत है।

 

 

 

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