शिक्षा

वो शख़्स , अजीब सा मंजर ….

वो शख़्स

अजीब सा मंजर था,

और सभी चिल्ला रहे थे॥

चुप,

लेकिन वो शख़्स था,

जो गेंहू के साथ घुन सा,

पिसा जा रहा था।

खाली उसकी जेब थी,

और कुछ भी नहीं,

उसके पाले में था ।

पेट थे भरे सबके,

फिर भी सब,

झपट्टा मार रहे थे ।

चुप खड़ा पीछे,

वो शख़्स था,

और अपनी बारी की प्रतीक्षा में

था वो शख़्स

जिसने कई रोज से,

कुछ भी खाया नहीं था॥

शर्मिंदा थे,

वो सब ,

देखकर जब अपने को,

मंहगे से महंगे लिवासों में।

रौब से चल रहा था

वो शख़्स

जो फटे हाल चीथड़ों में था॥

सो नहीं पा रहे थे

वो सब,

जबकि,

घर उनका

सौ पहरों में था

अपनी ही गरीबी के साथ

ख़ुश था वो शख़्स

और मज़े में

बेफ़िक्र भी

सोया

घोड़े बेच के जैसे

क्योंकि,

उसका सब कुछ

केवल,

ईमान ही,

उसकी तिजोरी में था॥

सौजन्य:

डॉ. पुष्पा खण्डूरी

एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी

डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज

देहरादून उत्तराखंड।

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