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पहली बार मैदान में उतरे अनिल बलूनी के सिर सजा पौड़ी का ताज, जानिए कौन हैं आपके सांसद

 

उत्तराखंड की गढ़वाल संसदीय सीट पर उजड़ी सल्तनत को संवारने और अजेय दुर्ग पर भगवा बुलंद रखने के बीच जो जंग थी उसे भाजपा ने फिर जीत लिया। वह एक लाख 63 हजार 503 मतों से विजयी हुए। इस जंग में बेशक 13 उम्मीदवारों ने ताल ठोकी थी, लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस के गणेश गोदियाल और भाजपा के अनिल बलूनी के बीच ही होता दिखाचुनाव जीतने के बाद उन्होंने कहा कि मैं गढ़वाल के सम्मानित मतदाताओं का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। अब पसीना बहाने की बारी मेरी है। मैंने गढ़वाल लोस क्षेत्र के विकास के लिए जो वादे किए हैं, उन्हें पूरा करने के लिए मैं जुट जाऊंगा। मैं पौड़ी गढ़वाल को देश की नंबर सीट बनाने के लिए पूरी कोशिश करुंगा।

 

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ByNews HeightPosted on 05 Jun 2024

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पहली बार मैदान में उतरे अनिल बलूनी के सिर सजा पौड़ी का ताज, जानिए कौन हैं आपके सांसद

 

पौड़ी गढ़वाल सीट पर इससे पहले पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत सांसद रहे थे। वहीं, भाजपा कई सालो ंसे इस सीट पर अपना दबदबा बनाए हुए है

 

 

 

 

 

 

 

।उत्तराखंड की गढ़वाल संसदीय सीट पर उजड़ी सल्तनत को संवारने और अजेय दुर्ग पर भगवा बुलंद रखने के बीच जो जंग थी उसे भाजपा ने फिर जीत लिया। वह एक लाख 63 हजार 503 मतों से विजयी हुए। इस जंग में बेशक 13 उम्मीदवारों ने ताल ठोकी थी, लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस के गणेश गोदियाल और भाजपा के अनिल बलूनी के बीच ही होता दिखाचुनाव जीतने के बाद उन्होंने कहा कि मैं गढ़वाल के सम्मानित मतदाताओं का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। अब पसीना बहाने की बारी मेरी है। मैंने गढ़वाल लोस क्षेत्र के विकास के लिए जो वादे किए हैं, उन्हें पूरा करने के लिए मैं जुट जाऊंगा। मैं पौड़ी गढ़वाल को देश की नंबर सीट बनाने के लिए पूरी कोशिश करुंगा।

 

 

जानिए कौन हैं अनिल बलूनी

गांव – डांडा नागराजा, नकोट गांव, पौड़ी

कॅरियर – बतौर पत्रकार शुरूआत, बाद में राजनीति में प्रवेश

चुनाव – 2002 के विधानसभा चुनाव में कोटद्वार सीट से भागीदारी, राज्यसभा से सांसद रहे

सरकारी दायित्व – निशंक सरकार में वन्य एवं पर्यावरण सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष

दायित्व- भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया विभाग के प्रमुख

 

28 वर्षों तक कांग्रेस का रहा दबदबा

आजादी के आंदोलन से प्रभावित रहे गढ़वाल के मतदाताओं में 28 वर्षों तक नेहरू-इंदिरा का जादू सिर चढ़कर बोला। उस समय कांग्रेस के बारे में यह कहावत बन गई कि गढ़वाल में उसकी जीत का सूरज शायद ही कभी डूबेगा।

 

 

खेमेबंदी और रामलहर में उजड़ गई सल्तनत

…लेकिन वक्त के साथ लोगों के मन से कांग्रेस का जादू उतरने लगा। 80 से 90 के दशक तक कांग्रेस की जड़े खेमेबंदी और आंतरिक विद्रोह से हिलने लगी। 90 के दशक में अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन की लहर में कांग्रेस के किले की दीवारें दरकने लगी। 21वीं सदी में आने के साथ ही कांग्रेस का किला खंडहर में तब्दील हो गया।

 

 

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