प्रदेश के मुख्य मंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखण्ड की जागर गायिका कमला देवी को कोक स्टूडियो में गायन का अवसर मिलने पर बधाई एवं शुभकामनाएं।
कमला देवी अपनी गायिकी के माध्यम से उत्तराखण्ड के लोक संगीत को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। लोक संगीत के संरक्षण व संवर्धन के प्रति उनका उत्साह एवं समर्पण अत्यंत प्रशंसनीय है।
कोक स्टूडियो ने देश के कई गायकों को पहचान दी है. अब देवभूमि उत्तराखंड के ग्रामीण परिवेश में रहने वाली एक ऐसी लोकगायिका जिसका लंबा करियर तो है लेकिन जानते बेहद कम ही लोग हैं, ऐसी गायिका का कोक स्टूडियो में मौका मिलना पहाड़ के लिए गर्व की बात है.
उत्तराखंड के बागेश्वर जिले की गरुड़ तहसील स्थित लखनी गांव की रहने वालीं कमला देवी के कंठ में साक्षात सरस्वती निवास करती हैं. वह उत्तराखंड की जागर गायिका हैं. कमला देवी बताती हैं कि उनका बचपन गाय-भैंसों के साथ जंगल और खेत-खलिहानों के बीच बीता. इस बीच 15 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई. ससुराल आईं तो यहां भी घर, खेतीबाड़ी में ही लगी रहीं. वह कहती हैं कि उन्हें न्यौली, छपेली, राजुला, मालूशाही, हुड़कीबोल आदि गीतों को गाने का शौक था. जंगल जाते वक्त वह गुनगुनाती और अपनी सहेलियों को भी सुनाती थीं
कमला देवी बताती हैं कि उन्होंने नैनीताल के भवाली में एक छोटा सा ढाबा खोला था. यहां एक दिन प्रसिद्ध जागर गायक शिरोमणि पंत आए. उस समय वह काम करते हुए गीत गुनगुना रही थीं. गीत सुनकर पंत उनके पास पहुंचे और पूछने लगे कि क्या वह किसी गीत मंडली, ड्रामा वगैरह में काम करती हैं. उन्होंने तपाक से जवाब देते हुए कहा कि उन्हें गीत गाने का शौक तो है, लेकिन कभी गाने का मौका नहीं मिला. कमला देवी बताती हैं कि वह मुलाकात ही थी, जिसके बाद उन्हें गीत-संगीत जगत में मौका मिला. इसके बाद कमला देवी ने आकाशवाणी अल्मोड़ा में भी प्रस्तुति दी. वह कहती हैं कि उन्हें देहरादून भी पहली बार शिरोमणि पंत ने ही दिखाया था. अपने 40 साल के करियर का श्रेय वह शिरोमणि पंत को ही देती हैं.