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Electroral Bond scheme ‘unconstitutiona

दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम (चुनावी बॉन्ड) को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए बैंकों को इनकी बिक्री बंद करने का निर्देश दिया है। ‘ शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में यह भी माना कि इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ , जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बॉन्ड मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और यह ब्लैक मनी पर अंकुश लगाने का एकमात्र तरी24506-2का नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को चुनावी बॉन्ड की बिक्री बंद करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही पीठ ने भारतीय स्टेट बैंक को निर्देश दिया कि पिछले पांच वर्षों में किस पार्टी को कितने चुनावी बॉन्ड जारी किए गए हैं, इसकी जानकारी उपलब्ध कराई जाए। बैंक को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे का विवरण तीन सप्ताह के अंदर इलेक्शन कमीशन को देना होगा। एसबीआई को यह भी निर्देश दिया गया है कि, वह चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी अपनी वेबसाइट पर भी पब्लिश करे।

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की घोषणा केंद्र सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को की थी। चुनावी बॉन्ड किसी भी व्यक्ति जो भारतीय नागरिक है या व्यवसाय, संघ या निगम जिसका गठन या स्थापना भारत में हुई है, द्वारा भारतीय स्टेट बैंक की अधिकृत शाखाओं से खरीदा जा सकता था।

कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि, एसबीआई तमाम जानकारी को सार्वजनिक पटल पर रखे, जिससे जनता को मालूम पड़े कि किसने कितना पैसा दिया। कांग्रेस ने भाजपा पर निशाना साधा है कि यह स्कीम मोदी सरकार ‘मनी बिल’ के तौर पर लाई थी, ताकि राज्यसभा में इसपर चर्चा न हो, यह सीधा पारित हो जाए।हमें डर है कि कहीं फिर से कोई अध्यादेश जारी न हो जाए और मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बच जाए।

मीडिया एवं पब्लिसिटी विभाग के चेयरमैन पवन खेड़ा ने मीडिया को बताया, आज सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इलेक्टोरल बॉन्ड पर एक महत्वपूर्ण फैसला आया है। 2017 में जब इलेक्टोरल बॉन्ड लाया गया था, तब कांग्रेस ने इलेक्टोरल बॉन्ड को का पुरजोर विरोध किया था। कांग्रेस ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि, यह प्रक्रिया अपारदर्शी है। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। इस बॉन्ड से काला धन सफेद होने की संभावना बढ़ जाएगी। सारा लाभ सत्ता पक्ष को ही मिलेगा। इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाली कंपनियों और सत्ता पक्ष के बीच एक अनकहा-अनदेखा रिश्ता स्थापित हो जाएगा।

 

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